प्रौद्योगिकी का उपयोग कर युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करने की आवश्यकता : डा.डी.के.वत्स

प्रदेश में रबी सीजन के लिए 687.37 हजार टन का लक्ष्य
गेहूं,जौ,जई व सरसों फसलों की किस्में विकसित
18 हजार से अधिक किसानों की भागीदारी के साथ 521 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित

पालमपुर 7 अक्टूबर

चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में शनिवार को रबी फसलों पर राज्य स्तरीय कृषि अधिकारियों की कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति डा. डी.के.वत्स ने कहा कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक का समय पर उपयोग करना जरूरी है। इससे युवा खेती की ओर आकर्षित होंगे। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग, ड्रोन प्रौद्योगिकी, फसल विविधीकरण आदि पर काम कर रहा है। उन्होंने समय, संसाधन बचाने और कठिन परिश्रम को कम करने के लिए कृषि मशीनीकरण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि राज्य में कृषि इंजीनियरिंग महाविद्यालय की आवश्यकता है। कुलपति ने कहा कि यह उत्साहजनक है कि गुणवत्ता वाले बीजों की मांग बढ़ी है, मगर इसके लिए किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कृषि भूमि में कमी और कम बारिश के बावजूद, देश ने रिकॉर्ड 330 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन किया है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित फसल किस्मों से सभी प्रमुख फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई है लेकिन यह राष्ट्रीय औसत के बराबर नहीं है। उन्होंने लगातार बढ़ती आबादी को खिलाने के मद्देनजर कृषि उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विपणन नेटवर्क को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि सभी फसलों, विशेष रूप से पोषक अनाजों और प्राकृतिक कृषि प्रणाली के तहत उगाई जाने वाली फसलों को लाभकारी मूल्य मिल सके। उन्होंने पोषक अनाज को आम जनता में लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों, प्रदूषण नियंत्रण, युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करना आदि पर भी चर्चा की।
हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त कृषि निदेशक डा. पवन कुमार ने रबी फसलों के लिए कृषि आदानों की व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि रबी सीजन के लिए 687.37 हजार टन का लक्ष्य रखा गया है। अधिक उपज देने वाली किस्मों के तहत अधिक क्षेत्र को कवर करने के उद्देश्य से गेहूं, दलहन और तिलहन के 7468 मीट्रिक टन प्रमाणित बीज और लगभग 54,450 उन्नत कृषि उपकरण भी वितरित किए जाएंगे। उन्होंने विश्वविद्यालय से जिलेवार पोषक अनाजों  की खेती के लिए प्रथाओं का पैकेज तैयार करने को कहा।
अनुसंधान निदेशक डा.एस.पी.दीक्षित ने बताया कि पिछली कार्यशाला के बाद से विश्वविद्यालय ने चार फसलों की किस्में विकसित की हैं। इनमें से हिम पालम गेहुं 3 (एचपीडब्ल्यू 373) और हिम पालम जौ 2 (एचबीएल 804) को केंद्रीय किस्म रिलीज समिति द्वारा अधिसूचित किया गया है। हिम पालम सरसों 2 को मंजूरी दी गई है और चारा फसल की जई किस्म पीएलपी 24 को खेती के लिए सामने लाया गया है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान मूल्यांकन समिति द्वारा अधिक उपज देने वाली गेहूं की किस्म एचपीडब्ल्यू 484 (ट्रॉम्बे हिम पालम गेहु एन 4) की सिफारिश की गई है। उन्होंने अन्य अनुसंधान उपलब्धियों के बारे में भी विस्तार से बताया।
प्रसार शिक्षा निदेशक डा. नवीन कुमार ने विस्तार शिक्षा में प्रमुख उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि 18 हजार से अधिक किसानों की भागीदारी के साथ 521 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। लगभग 7400 किसानों ने तकनीकी मार्गदर्शन के लिए मुख्य परिसर और कृषि विज्ञान केंद्रों का दौरा किया। उन्होंने बताया कि एम किसान पोर्टल और व्हाट्सएप समूहों का उपयोग किसानों को सलाह देने के लिए किया जाता है। चार लाख से अधिक किसानों को सलाह दी गई। उन्होंने बताया कि किसानों के खेतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की जियो टैगिंग की जाती है।
डॉ. रंजना वर्मा द्वारा ‘‘ पोषक अनाज और उनके मूल्यवर्धित उत्पादों के महत्व और स्वास्थ्य लाभ‘‘ पर विशेष व्याख्यान और डा. आशीष धीमान द्वारा ‘‘ कृषि में ड्रोन प्रौद्योगिकी का दायरा और महत्व और कस्टम हायरिंग केंद्रों के माध्यम से पहाड़ी किसानों को इसके लाभ‘‘ और डॉ. निमित कुमार द्वारा  ‘‘ पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा और इसके महत्व ‘‘  पर  प्रतिभागियों के लिए व्यवस्था की गई थी। फीडबैक और इंटरेक्शन सत्र भी आयोजित किया गया।
सह निदेशक डा.राजेश उप्पल एवं डा.लव भूषण ने भी अपने विचार व्यक्त किये। विश्वविद्यालय के संविधिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों, उप निदेशकों और राज्य कृषि विभाग के अन्य अधिकारियों और कुल्लू के बीर चंद, बिलासपुर के ब्रह्म दास और हमीरपुर के पुरषोतम सिंह जैसे लगभग एक दर्जन प्रगतिशील किसानों ने कार्यशाला में सक्रिय रूप से भाग लिया।

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