विश्वविद्यालय में 2.50 करोड़ रुपये के जर्मप्लाज्म रिसोर्स नेटवर्क की स्थापना होगी, परम्पराओं व पारपंरिक फसलों को सहजने में किसानों की मदद

चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में जर्मप्लाज्म रिसोर्स नेटवर्क “अनुवंशिकी संसाधन” की स्थापना के लिए योजना बनाई है, जो हिमालयी फसलों के कीमती खजाने के संरक्षण के लिए एक बुनियादी और सबसे प्रतिष्ठित सुविधा है। कुलपति प्रो. एच.के.चौधरी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि हिमाचल प्रदेश सरकार से 2.50 करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर हुई है जिसका विश्वविद्यालय में उपयोग करते हुए यह सुविधा तैयार होगी। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय को हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद “हिमकॉस्ट” ने कुछ परियोजनाओं को भी मंजूरी मिली है। जीआई संबंधित जानकारी का उत्पादन और माल के भौगोलिक संकेतक के तहत पंजीकरण, नियम 2002 के तहत 1.37 लाख रुपये की परियोजना, हिमाचल प्रदेश के लाल चावल के लिए, चंबा चुख के लिए 1.17 लाख और करसोग की कुल्थी (घोड़ाग्राम) के लिए 1.17 लाख की परियोजना स्वीकृत हुई है। उन्होंने बताया कि उत्तर-पश्चिम हिमालयी क्षेत्रों में विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश की विभिन्न कृषि -जलवायु स्थितियों के लिए चल रहे सुधार प्रयासों में भविष्य की भावी पीढ़ी और स्थायी उपयोग से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आकर्षित करना और समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने में भी मदद मिलेगी।
प्रो.चौधरी ने बताया कि विश्वविद्यालय भारत सरकार के किसान अधिकार प्राधिकरण के साथ पौधों की किस्मों के संरक्षण के साथ किसान किस्मों के पंजीकरण में भी मदद कर रहा है। सलूनी (चंबा) से स्थानीय मक्के की रत्ती, हाची  कुकड़ी और छिटकू और चिड़गांव, रोहड़ू से लाल चावल की छोहारटू स्थानीय किस्म को पंजीकृत किया गया। इसी तरह, विश्वविद्यालय ने एनबीएजीआर करनाल के साथ आठ पशु नस्लों के पंजीकरण में मदद की। ये गद्दी भेड़, रामपुर-बुशैहर भेड़, गद्दी बकरी, चीगू बकरी, स्पीति घोड़ा, स्पीति गधा, हिमाचली पहाड़ी मवेशी और गोजरी भैंस हैं। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पंजीकरण के लिए प्रासंगिक तकनीकी और वैज्ञानिक डेटा तैयार किया है।
प्रो. एच.के.चौधरी बताते है कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र के साथ महत्वपूर्ण लक्षणों के जीन के पांच आरएनए और डीएनए अनुक्रम भी पंजीकृत किए हैं। हाल ही में विश्वविद्यालय ने जौ की एचबीएल 391 (गोकुल) किस्म और मसूर, सोयाबीन, गेहूं, फील्ड मटर और चना की आठ अन्य किस्मों को भी पंजीकृत किया है। विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के साथ उद्यान मटर जर्मप्लाज्म, जंगली मसूर और चने के जर्मप्लाज्म का पंजीकरण भी प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया की पेचीदगियों को समझने के लिए वैज्ञानिकों और किसानों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार-नीति दिशा-निर्देश भी प्रकाशित किए गए हैं। वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी के साथ विश्वविद्यालय ने किसानों को राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए आवेदन करने में भी मदद की है जिसमें पालमपुर के नंदू राम को पिछले वर्ष दिसंबर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल ;एनबीएजीआरद्ध द्वारा गद्दी बकरी नस्ल के लिए व्यक्तिगत श्रेणी (छोटे जुगाली करने वाले) के तहत राष्ट्रीय नस्ल संरक्षण पुरस्कार 2021 से सम्मानित किया गया था। चंबा जिले की भदल पंचायत के किसानों को मक्का की भूमि प्रजातियों हाची कुकड़ी (सफेद), रेटी कुकड़ी (लाल) और चिटकुकड़ी (पॉपकॉर्न) के संरक्षण के लिए प्लांट जीनोम सेवियर कम्युनिटी अवार्ड भी मिला है और रोहड़ू चिड़गांव (शिमला) के लाल चावल तैयार करने वाले किसानों को प्लांट जीनोम सेवियर सम्मान मिला। लाल चावल की किस्म छोहारटू को संरक्षित करने के लिए 2021 में पुरस्कार मिला। अब आगे काला जीरा, राजमाश, उड़द, कुल्थी और अदरक के लिए भी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए इस तरह के प्रयास विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे है। 

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