हिमाचल प्रदेश का चुनावी मैंडेट हर फैक्टर से परे रहता है। हर बड़े प्रभाव से परे रहता है। यह अपने आप में एक पंचायत चुनाव है । जहां माइक्रो मैनेजमेंट और प्रत्याशी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं बजाय इसके की जाती क्या है, वर्ग क्या है पार्टी क्या है और प्रचार प्रसार कैसा है। यहां जनता अपनी राय सिर्फ चुनावी समय में तय नही करती धीरे धीरे जजमेंट लेकर डेटा बुनती रहती है और कई फैक्टर पर लाजीक लगाकर जनमत देती है।
ऊपरी हिमाचल में कांग्रेस शिमला में भाजपा को सिर्फ एक सीट पर रोक देती है वही उसी शिमला , वीरभद्र परिवार की सीट रामपुर जहां से आजतक विपक्ष का विधायक नही बना वहां भाजपा उम्मीदवार नया लड़का कौल नेगी महज 300 वोट से जीत से चूक जाता है।
मंडी जिला में भाजपा कांग्रेस को महज एक सीट पर रोकती है और वो सीट धर्मपुर है जहां से रिकार्ड धारी महिंद्र ठाकुर के बेटे मैदान में है और वो सीट भाजपा की कन्फर्म सीटों में मानी जाती थी। कांग्रेस से CM इन वेटिंग कौल सिंह ठाकुर उसी जिले से चुनाव हारते हैं। कमजोर आंके जा रहे मजबूरी का नाम बताए जा रहे बल्ह से इंद्र सिंह गांधी जीत जाते हैं।
हमीरपुर में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के गृह जिला से भाजपा जीरो हो जाती है। सबसे स्ट्रांग कही जा रही भोरंज सीट 35 साल बाद कांग्रेस ले जाती है। गढ़ रही हमीरपुर सदर पर नौजवान निर्दलीय आशीष शर्मा को जनता चुनती है।
बगल के बिलासपुर जिला से। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा जहां से लड़ते हैं सदर सीट भाजपा 300 से कम मार्जन से जीत पाती है वहीं नैना देवी में जहां एक और सी एम इन वेटिंग रामलाल ठाकुर कांग्रेस की तरफ से थे वहां भी भाजपा 150 से कम मार्जन पर निकल जाती है। जबकि जहां से मंत्री पद रहा वहां घुमारवीं सीट हार जाती है।
ऊना में विपरीत परिस्थितियों में सतपाल सत्ती निकल जाते हैं तो वीरेंद्र कंवर मामला क्लोज है क्लोज है के फेर में 7000 प्लस से हार जाते हैं। बड़सर में भाजपा और निर्दलीय लगभग बराबर वोट लेते हैं। कांग्रेस यह सीट जीत जाती है।
सिरमौर की सबसे स्ट्रांग सीट बताई जा रही नाहन पर भाजपा के मैनेजर कहे जाने वाले राजीव बिंदल हारते हैं। तो हाटी बहुलय शिलाई में बलदेव तोमर कोई तीर नही मार पाते। कुल्लू में कमजोर आंके जा रहे शौरी बिना शोर जीत का तमगा पहनते है तो आनी से लोगो के इंद्र लोकिंद्र बनते हैं जो मूल रूप से कमुनिष्ठ हैं।
कांग्रेस की लहर में भी डलहौजी से आशा को निराशा मिलती है। तो भटियात से कुल का दीपक दुबारा खिलता है। बिना राजनैतिक अनुभव के डॉक्टर जनक राज को भरमौर का राज मिलता है।
कांगड़ा में हर बार चौधरी फैक्टर से टिकट बचा लेंने वाली सरवीन इस बार जमानत जब्त करवा चुके कैंडिडेट की आंधी में ऐसी उड़ती है की अब चौधरी बनाम बाकी वोट गिने की नही गिने ।
सुलह मे जनता के बीच ऐसी सुलह बनती है की कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंच जाता है। वहीं जसवा से पराशर फेर में फंसे भाजपा के मंत्री विपरीत परिस्थिति में भी विक्रमादित्य की पदवी पा लेते हैं ।
देहरा में टिकट को भटकाए होशियार सबसे होशियार निकलते है तो स्वयंभू ओ बी सी के दलाई लामा अपने आप को बताने वाले ढ्वाला ओ बी सी बहुलाय सीट पर भी तीसरे नंबर का पद लेकर सन्यास की तरफ गमन करते हैं।
नागरोटा बगवां में पिता बनाम पुत्र की छवि के द्वंद में फंसाए जा रहे जानू ही वीर बनकर निकलते हैं और कांग्रेस की तरफ से पूरे जिले में हाईईस्ट मार्जिन का रिकार्ड बनाते हैं।
कांगड़ा में चक्रव्यूह में घिरे बताए जा रहे काजल ऐसी पवन चलाते हैं की सब उड़ जाते हैं। काजल अपनी वीरता पर तो अभिमान कर रहे होंगे अपनी बुद्धि को भी जरूर कोस रहे होंगे। जिसने उन्हें बैठे बिठाए विपक्ष में पहुंचा दिया।
खास रणनीति और विरोधी खेमे में खलबली मचाने के तहत नालागढ़ से कांग्रेस से भाजपा में लाए सिटिंग विधायक राना तीसरे नंबर की ओर रुख करते है तो । रुसवा किए ठाकुर निर्दलीय जीत का दंभ भरते हैं। राना भी अपनी बुद्धि को निसंदेह कोस रहे होंगे।
कुल मिलाकर ऐसे बहुत से उदाहरण है जो बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश का चुनाव और उसका आकलन स्टूडियो में कोट पेंट पहनकर या फील्ड एक्सपर्ट के रूप में जातीय क्षेत्रीय और पूर्व में हुए चुनावों के आंकड़ों की डेटा बुक हाथ में लेकर नही किया जा सकता।
पहाड़ की हवा फ्रेश है, यहां का हर चुनाव भी फ्रेश है। और हर सीट के मतदाता की अपनी अलग सेट्रेस है। इसलिए आकलन के लिए भी चाहिए बहुत ट्रिक्स हैं। नतीजे तो यही कहते हैं।
थोड़ा बहुत उनसे पहले पंडित शशिपाल डोगरा जी बीच बीच में कहते रहते हैं । उन्होंने ब्राह्मण मुख्यमंत्री की बात कही है।बाकी हुई है वही जो राम रची राखा