गुग्गा नवमी 27 अगस्त विशेष

विक्रमी संवत के माह भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन गोगा नवमी मनायी जाती है। गोगा राजस्थान के लोक देवता हैं। पंजाब और हरियाणा समेत हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इस पर्व को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।

गोगा नवमी इसलिए भी खास इसलिए भी है क्योंकि इसे हिन्दू और मुसलमान दोनों मनाते हैं।

गुग्गा नवमी के दिन नागों की पूजा करते हैं मान्यता है कि गुग्गा देवता की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है। गुग्गा देवता को सांपों का देवता भी माना जाता है. गुग्गा देवता की पूजा श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन से आरंभ हो जाती है, यह पूजा-पाठ नौ दिनों तक यानी नवमी तक चलती है इसलिए इसे गुग्गा नवमी कहा जाता है।

गोगाजी को गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नाम से भी जानते हैं। यह गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा गांव में हुआ था यह ददरेवा में स्थित है जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी का प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है की अगर किसी के घर में सांप निकले तो गोगाजी को कच्चे दूध का छिटा लगा दें इससे सांप बिना नुकसान पहुंचाए चला जाता हैं । जिस घर में गोगा जी की पूजा होती हैं उस घर के लोगो को सांप नहीं काटता है गोगाजी पूरे परिवार की रक्षा करते हैं।

गुग्गावीर की जन्म कथा

गुग्गा नवमी के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार गुग्गा मारु देश का राजा था और उनकी मां बाछला, गुरु गोरखनाथ जी की परम भक्त थीं। एक दिन बाबा गोरखनाथ अपने शिष्यों समेत बछाला के राज्य में आते है। रानी को जब इस बारत का पता चलता हे तो वह बहुत प्रसन्न होती है इधर बाबा गोरखनाथ अपने शिष्य सिद्ध धनेरिया को नगर में जाकर फेरी लगाने का आदेश देते हैं। गुरु का आदेश पाकर शिष्‍य नगर में भिक्षाटन करने के लिए निकल पड़ता है भिक्षा मांगते हुए वह राजमहल में जा पहुंचता है तो रानी योगी बहुत सारा धन प्रदान करती हैं लेकिन शिष्य वह लेने से मना कर देता है और थोडा़ सा अनाज मांगता है।

रानी अपने अहंकारवश उससे कहती है की राजमहल के गोदामों में तो आनाज का भंडार लगा हुआ है तुम इस अनाज को किसमें ले जाना चाहोगे तो योगी शिष्य अपना भिक्षापात्र आगे बढ़ा देता है। आश्चर्यजनक रुप से सारा आनाज उसके भिक्षा पात्र में समा जाता है और राज्य का गोदाम खाली हो जाता है किंतु योगी का पात्र भरता ही नहीं तब रानी उन योगीजन की शक्ति के समक्ष नतमस्तक हो जाती है और उनसे क्षमा याचना की गुहार लगाती है।

रानी योगी के समक्ष अपने दुख को व्यक्त करती है और अपनी कोई संतान न होने का दुख बताती है। शिष्य योगी, रानी को अपने गुरु से मिलने को कहता है जिससे उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त हो सकता है. यह बात सुनकर रानी अगली सुबह जब वह गुरु के आश्रम जाने को तैयार होती है तभी उसकी बहन काछला वहां पहुंचकर उसका सारा भेद ले लेती है और गुरु गोरखनाथ के पास पहले पहुंचकर उससे दोनो फल ग्रहण कर लेती है।

परंतु जब रानी उनके पास फल के लिए जाती है तो गुरू सारा भेद जानने पर पुन: गोरखनाथ रानी को फल प्रदान करते हैं और आशिर्वाद देते हें कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है उस बालक का नाम गुग्गा रखा जाता है।

कुछ समय पश्चात जब गुग्गा के विवाह के लिए गौड़ बंगाल के राजा मालप की बेटी सुरियल को चुना गया परंतु राजा ने अपनी बेटी की शादी गुग्गा से करवाने से मना कर दिया इस बात से दुखी गुग्गा अपने गुरु गोरखनाथ जी के पास जाता है और उन्हें सारी घटना बताता है। बाबा गोरखनाथ ने अपने शिष्य को दुखी देख उसकी सहायता हेतु वासुकी नाग से राजा की कन्या को विषप्रहार करवाते हैं।

राजा के वैद्य उस विष का तोड़ नहीं जान पाते अंत वेश बदले वासुकी नाग राजा से कहते हैं कि यदि वह गुग्गा मंत्र का जाप करे तो शायद विष का प्रभाव समाप्त हो जाए राजा गुगमल मंत्र का प्रयोग विष उतारने के लिए करते हैं देखते ही देखते राजा की बेटी सुरियल विष के प्रभाव से मुक्त हो जाती है और राजा अपने कथन अनुसार अपनी पुत्री का विवाह गुगमल से करवा देता है।

गुग्गावीर पूजा विधि

नवमी के दिन स्नानादि करके गोगा देव की या तो मिटटी की मूर्ति को घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगा जी की तस्वीर को रोली,चावल,पुष्प,गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए। साथ में खीर,चूरमा, गुलगुले, लापसी, पूरी – पुए आदि का प्रसाद लगाएं एवं चने की दाल गोगा जी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं।

इस दिन भक्तगण गोगा जी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं। कहीं-कहीं तो सांप की बांबी की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगा जी महाराज की पूजा करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जहाँ उनकी पूजा रोली, मोली , अक्षत , नारियल से होती है।

रक्षाबन्धन पर बाँधी गई राखियाँ खोलकर गोगा जी के चरणों में अर्पित की जाती हैं।

गोगा जाहरवीर चालीसा

जय जय जाहर रणधीरा पर दुःख भजन बागड़ वीरा ॥

गुरु गोरख का है वरदानी जाहरवीर जोधा लासानी॥

गौरवरण मुख महा विशाला माथे मुकट घुँघराले वाला ॥

काँधे धनुष गले तुलसी माला, कमर कृपाड रक्षा को ढाला॥

जन्मे गूगावीर जग जाना, ईसवी सन हजार दरमियाना ॥

बल सागर गुण निधि कुमारा दुखी जनों का बना सहारा ॥

बागड़ पति बाछला नन्दन, जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन ॥

जेवर राव के पुत्र कहाये माता पिता के मान बढ़ाये ॥

पूर्ण हुई कामना सारी जिसने विनती करि तुम्हारी॥

संत उबार असुर संहारे, भक्त जनों के काज सँवारे॥

गोगावीर की अज़ बखानी जिनको बयाही श्रियल रानी ॥

बाछल रानी जेवर राणा महा दुखी थे बिन संताना ॥

भंगिन ने जब बोली मारी जीवन हो गया था उनको भारी॥

सूखा बाग़ हो गया था नौलखा, देख देख जग का मन दुखा॥

कुछ दिन पीछे साधू आये चेली चेला संग में लाये ॥

जेवर राव कुआँ खुदवाया, और उद्घाटन जब करना चाहा,

खारी नीर कुँए से निकला, राजा रानी का मन तब पिघला॥

रानी तब ज्योतिषी बुलबाया, कौन पाप में पुत्र ना पाया ॥

कोई उपाय हमको बतलाओ, उन कहा गोरख गुरु को मनाओ॥

गुरु गोरख जो खुश जावे, तो संतति पाना मुश्किल नाये॥

बाछल रानी गोरखगुरु के गुण गावै, नेम धर्म को नहीं बिसरावे ॥

करें तपस्या दिन और राति, एक वक्त खाएं रूखी चपाती॥

कार्तिक मॉस में गंगा नहाना, व्रत एकादशी का नहीं भुलाना॥

पूरनमासी व्रत नहीं छोड़े, दान पुन्य से मुख नहीं मोड़े ॥

चेलों के संग गोरख आये, नौलखे में तम्बू तनवाये ॥

मीठा नीर कुँए का कीना सूखा बाग़ हरा कर दीना॥

मेवा फल सब साधू खावे अपने गुरु के गुण को गावे॥

औधड नाथ भिक्षा मांगने आये, बाछल रानी दुःख सुनाये ॥

औघड़नाथ जान लियो मनमाही, तपबल से कुछ मुश्किल नाहीँ॥

रानी होवे मनसा पूरी गुरु शरण है बहुत जरुरी॥

बारह बरस जपा गुरु नामा, तब गोरख ने मन में जाना ॥

पुत्र देने की हामी भर ली, पूरनमाशी निश्यय कर ली॥

काछल कपटिन गजब गुजारा, धोखा गुरु संग किया करारा ॥

बाछल बनकर पुत्र पाया, बहन का दरद जरा नहीं आया॥

औघड़ गुरु को भेद बताया, तब बाछल ने गुग्गल पाया ॥

कर परसादी दिया गुग्गल दाना, अब तुम पुत्र जनो मरदाना ॥

नीली घोड़ी और पंडतानी, लूना दासी ने भी जानो ॥

रानी गुग्गल बाँट कर खाई, सब बाँझो को मिली दवाई ॥

नरसिंह पंडित लीला घोडा , भज्जु कुतवाल जना रणधीरा ॥

रूप विकट धर सब ही डरावे, जाहरवीर के मन को भावे ॥

भादों कृष्ण की नवमी आई, तब जेवर राव घर बजी बधाई ॥

विवाह हुआ गोगा भये राणा, संगलदीप में बने मेहमाना ॥

रानी श्रियल संग फिरे फेरे, जाहर राज बागड़ का करे ॥

अरजन, सरजन काछल जने,गोगावीर से हमेशा रहे वो तने ॥

दिल्ली गए लड़न के काजे, अंगलपाल चढ़े महाराजा॥

उसने घेरी बागड़ साड़ी जाहरवीर हिम्मत नहीं हारी॥

अरजन, सरजन जान से मारे, अंगलपाल ने शस्त्र डारे ॥

चरण पकड़कर पिंड छुड़ाया, सिंहभवन माड़ी बनवाया॥

उसी में गोगावीर समाये, गोरख टीला धूनी रमाये ॥

पुण्यवान भक्त वहाँ जाये, तन मन धन से सेवा लाये ॥

मनसा पूरी उनकी होये, गोगावीर को सुमरे जोई ॥

चालीस दिन पढ़े जो चालीसा सारे कष्ट हरे जगदीशा ॥

दूधपुत उन्हें दे विधाता कृपा करे, गुरु गोरखनाथा॥

गोगा जाहरवीर जी की आरती

जय -जय जाहरवीर हरे,जय -जय गोगावीर हरे ,

धरती पर आकर के भक्तों के कष्ट हरे जय जय —-

जो कोई भक्ति करे प्रेम से , निसादिन करे प्रेम से ,भागे दुःख परे ,

विघ्न हरन मंगल के दाता,जन -जन का कष्ट हरे ,

जेवर राव के पुत्र कहाए,रानी बाछल माता ,

बागड़ में जन्म लिया गुगा ने ,सब जय -जयकार करे ,जय जय ……

धर्म कि बेल बढाई निशदिन ,तपस्या रोज करे

दुष्ट जनों को दण्ड दिया ,जग में रहे आप खरे ,जय -जय ……

सत्य अहिंसा का व्रत धारा ,झुठ से सदा डरे

वचन भंग को बुरा समझ कर , घर से आप निकरे , जय-जय …

माडी में करी तपस्या अचरज सभी करे

चारों दिशाओं से भगत आ रहे ,जोड़े हाथ खड़े ,जय-जय …….

अजर अमर है नाम तुम्हारा ,हे प्रसिद्ध जगत उजियारा

भुत पिशाच निकट नहीं आवे , जो कोई जाहर नाम गावे , जय जय ….

सच्चे मन से जो ध्यान लगावे ,सुख सम्पति घर आवे ,

नाम तुम्हारा जो कोई गावे ,जन्म जन्म के दुःख बिसरावे ,जय-जय …

भादो कृषण नोमी के दिन जो पुजे ,वह विघ्नों से नहीं डरे ,

जय-जय जाहर वीर हरे , जय श्री गोगा वीर हरे …..!

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