जैविक कृषि के विद्यार्थी व सोलन के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र शर्मा को सम्मान
तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आरंभ,देश के विभिन्न भागों से जुटे अढ़ाई सौ विशेषज्ञ
पालमपुर,7 जून
चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में बुधवार को भारतीय जैविक कृषि सोसायटी, जैविक कृषि और प्राकृतिक खेती और संरक्षित कृषि और प्राकृतिक विभाग द्वारा ‘‘पारिस्थितिक, आर्थिक और पोषण सुरक्षा के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती ‘‘ पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आरंभ हुआ। सम्मेलन का उद्घाटन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डाक्टर तेजप्रताप ने किया वहीं एपीडा के महाप्रबंधक वी.के. विद्यार्थी बतौर विशिष्ट अतिथि रहे वहीं कुलपति प्रोफेसर एच.के. चौधरी ने कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की।
मुख्य अतिथि डाक्टर तेजप्रताप ने कहा कि हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर देश में जैविक कृषि शुरू करने वाला पहला विश्वविद्यालय है। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में जैविक कृषि पर एक नया पाठ्यक्रम शामिल किया गया है। उन्होंने विश्वव्यापी स्थिति और जैविक कृषि के विकास के विभिन्न चरणों का विस्तृत विवरण दिया।
डाक्टर तेजप्रताप ने बताया कि वैश्विक स्तर पर 7.6 करोड़ हेक्टेयर के कुल क्षेत्रफल में जैविक कृषि का हिस्सा केवल 1.6 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि दुनिया भर में जैविक कृषि करने वाले 37 लाख किसानों में से 15 लाख किसानों के साथ भारत जैविक कृषि में नंबर एक देश है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जैविक खेती के पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य, निष्पक्षता और देखभाल के चार सिद्धांत है। जो सभी प्रकार की जैविक और प्राकृतिक खेती प्रथाओं में मान्य हैं और ये वृक्षायुर्वेद में निहित हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हम आज तक जैविक कृषि का हिस्सा नहीं बढ़ा पाए हैं क्योंकि हम जैविक खेती के सभी सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहे हैं।
कुलपति प्रो.एच.के.चौधरी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जैविक कृषि और प्राकृतिक खेती की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमें इस दिशा में विवेकपूर्ण ढंग से आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि देश पहले ही 142 करोड़ की आबादी के आंकड़े को छू चुका है और पूरी दुनिया खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए भारत की ओर देख रही है। उन्होंने देश में उर्वरक उद्योग के विकास और उर्वरकों के उपयोग का विस्तृत विवरण दिया। डॉ. चौधरी ने कहा कि कृषि समृद्धि का आनंद लेते-लेते हम रासायनिक खाद के साथ गोबर की खाद का प्रयोग करना ही भूल गए। साथ ही कृषि में पशुधन के योगदान की भी अनदेखी की गई जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की सेहत खराब हो गई। उन्होंने वैज्ञानिकों से जैविक और प्राकृतिक कृषि प्रणालियों के लिए उपयुक्त फसल किस्मों को विकसित करने के साथ-साथ उनके अभ्यासों के पूर्ण पैकेज का भी आग्रह किया। पोषक अनाज के अंतरराष्ट्रीय वर्ष होने के नाते, उन्होंने पोषण सुरक्षा के लिए पोषक अनाज के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि ये फसलें जैविक और प्राकृतिक कृषि प्रणालियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। उन्होंने आयोजकों से व्यापक प्रसार के लिए इस सम्मेलन से निकली कुछ अच्छी सिफारिशों के साथ आगे आने को कहा।
महाप्रबंधक, एपीडा के महाप्रबंधक वी.के. विद्यार्थी ने अपने संबोधन में जलवायु परिवर्तन और कृषि पर इसके प्रभाव के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण भोजन सुनिश्चित करने के लिए प्रकृति के नियमों का पालन करने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि एपीडा राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती पर पैकेज विकसित करने का प्रयास कर रहा है और भविष्य में निर्यात को कार्बन और वाटर फुटप्रिंट्स से जोड़ा जाए।
ऑर्गेनिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और सम्मेलन के आयोजन सचिव डाक्टर जनार्दन सिंह ने बताया कि तीन दिवसीय आयोजन में देश के विभिन्न भागों से 250 से अधिक वैज्ञानिक और शोधार्थियों ने भाग लिया है।
कार्यक्रम के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा तैयार कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशनों का मुख्य अतिथि ने विमोचन भी किया। सर्वश्रेष्ठ एम.एस.सी. और पीएचडी. उन छात्रों को थीसिस पुरस्कार जिन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती पर काम करने वाले स्नातकोत्तर और पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों तरुण शर्मा (कृषि विज्ञान) और शालिका कुमारी (कीट विज्ञान) नवजोत राणा व आशा आभा और सोलन जिले के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र शर्मा को सर्वश्रेष्ठ सफल कहानी के लिए सम्मानित किया गया। जैविक कृषि विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डाक्टर जेपी सैनी उत्कृष्ट योगदान के लिए ओएएसआई फेलो पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यक्रम में पद्मश्री से सम्मानित कृषिदूत नेक राम शर्मा, विश्वविद्यालय के संविधिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों, प्रगतिशील किसानों और विद्यार्थियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।