स्थापना दिवस पर विशेष फीचर
पालमपुर, 31 अक्तूबर
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (जून,2001 में संस्थान का नाम बदलकर चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय कर दिया गया) की स्थापना 1 नवंबर, 1978 को हुई थी। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से मान्यता प्राप्त संस्थान है। भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क ने इसे देश के सभी कृषि संस्थानों और संबद्ध क्षेत्र के संस्थानों में 14वें स्थान पर रखा है। हालांकि देश के सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में इस विश्वविद्यालय का आठवां स्थान है।
विश्वविद्यालय के चार घटक महाविद्यालय हैं जो सात स्नात्तक डिग्री कार्यक्रम, 26 स्नातकोत्तर डिग्री और 15 डॉक्टरेट डिग्री कार्यक्रम प्रदान करते हैं। वर्तमान में 1849 छात्र अध्ययनरत हैं, जिनमें भारतीय कृषि परिषद और भारतीय पशु चिकित्सा परिषद के 125 नामांकित विद्यार्थी और 14 भारतीय राज्यों तथा छह देशों के अंतरराष्ट्रीय छात्र शामिल हैं। स्थापना के बाद से अब तक विश्वविद्यालय से 9589 विद्यार्थी उत्तीर्ण हो चुके हैं।
विश्वविद्यालय ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विभिन्न फसलों की 179 उन्नत किस्में विकसित कर किसानों के लिए जारी की हैं। अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जी और चारा फसलों के लगभग 800 क्विंटल ब्रीडर बीज और लगभग 400 क्विंटल आधार बीज का उत्पादन किया जाता है और इसे आगे बढ़ाने और कृषक समुदाय को उपलब्ध कराने के लिए राज्य कृषि विभाग को आपूर्ति की जाती है। किसानों को 100 से अधिक कृषि प्रौद्योगिकियों की संस्तुति की गई है।
विश्वविद्यालय ने छात्रों और संकाय विनिमय कार्यक्रमों के अलावा अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों में तेजी लाने के लिए प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। कई छात्रों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय कार्य करते हुए शीर्ष रैंकिंग वाले विदेशी विश्वविद्यालयों से छात्रवृत्तियों को प्राप्त किया हैं। विश्वविद्यालय ने कुछ किसानों को राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाने में भी मदद की है।
प्रसार शिक्षा निदेशालय और इसके अधीन आठ कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों, पशुपालकों, कृषक महिलाओं, ग्रामीण युवाओं और कृषि और इसके संबद्ध विभागों आदि के अधिकारियों के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं।
मीडिया सेल विभिन्न जनसंपर्क और संचार माध्यमों की सहायता से लक्षित ग्राहकों और अन्य लोगों के बीच विश्वविद्यालय की साख व छवि को उभारता हैं। विश्वविद्यालय की फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स (ट्विटर) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर उल्लेखनीय उपस्थिति है।
विश्वविद्यालय में पिछले पैंतालीस वर्षों के दौरान कड़ी मेहनत के कारण राज्य ने
कृषि विकास में नई ऊंचाइयां हासिल की हैं जबकि खेती योग्य भूमि में लगातार कमी के बावजूद फसल की पैदावार बढ़ी है। फसलें प्रचुर मात्रा में होने से कृषक समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भारी सुधार हुआ है। विश्वविद्यालय में कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं, वर्चुअल क्लास रूम, फाइटोट्रॉन, हाइड्रोपोनिक सुविधा, हाई-टेक प्रशिक्षण हॉल, किसान छात्रावास, छात्र छात्रावास इत्यादि सुविधाएं बढ़ी हैं।
स्थापना दिवस के अवसर पर कुलपति डाक्टर दिनेश कुमार वत्स ने कहा कि आधुनिक तकनीकों ने कृषि में क्रांति ला दी है, जिससे यह अधिक कुशल,टिकाऊ और उत्पादक बन गई है। जीपीएस सुविधा से युक्त टैªक्टर और ड्रोन जैसी स्टीक कृषि तकनीकों के एकीकरण से किसान अपने संसाधनों का उचित प्रयोग करते हुए फसल की पैदावार को बढ़ाते हुए नुकसान को कम कर सकते है। भूमि की स्थिति, मौसम का हाल और फसल की सेहत को देखते हुए सेंसर तथा आंकड़ों को विश्लेषण करते हुए किसान सही निर्णय ले सकते हैं। जेनेटिक इंजीनियरिंग ने सूखा प्रतिरोधी व रोग प्रतिरोधी फसलों की किस्मों को सामने लाया है वहीं स्वचालित मशीनरी ने पर्यावरण प्रभाव को कम करते हुए हमारी वैश्विक बढ़ती जनसंख्या की खाद्य मांगों को पूरा करने के लिए हमारे श्रम को व्यवस्थित किया है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के कृषक समुदाय की अतिरिक्त उत्साह और जोश के साथ सेवा करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।