वन्य जीवन पर्यटन: वर्तमान और संभावनाएं

प्रवीण कुमार शर्मा -सत्तत विकास चिंतक

भारत मे चीतों को लाये जाने के पश्चात मध्य प्रदेश के ‘कुनो नेशनल पार्क’ का चर्चा मे आना स्वाभाविक था क्योंकि चीतों के विलुप्त होने के सात दशकों के बाद 8 चीतों को अफ्रीकी देश नामीबिया से लाकर इसी नेशनल पार्क मे रखा गया है । आने वाले दिनों मे इस राष्ट्रीय उद्यान मे वन्यजीवन प्रेमियों के साथ साथ पर्यटकों की संख्या मे वृद्धि तो होगी ही साथ मे मध्य प्रदेश सरकार के राजस्व मे भी बढ़ोतरी होना निश्चित है । इसी के साथ कुछ समय पहले एक और खबर चर्चा विषय बनी थी कि दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्राणी उद्यान के कारण 423 करोड़ रुपए के इकोलोजिकल लाभ दिल्ली को हुये । यूं तो इन दोनों खबरों का हिमाचल प्रदेश के साथ कोई संबंध नहीं है पर जिस प्रदेश की लगभग 68% भूमि वन भूमि हो, तो क्या वह प्रदेश वनों को ही अपनी जीडीपी का मुख्य आधार नहीं बना सकता है ?

हिमाचल प्रदेश मे 5 राष्ट्रीय उद्यान और 32 अभयारण्य हैं पर पड़ोसी राज्य उतराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एवं राजस्थान के रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान की तुलना मे हमारे यहाँ के राष्ट्रीय उद्यानों मे पर्यटकों की संख्या नगण्य ही है गौरतलब है कि कॉर्बेट और रणथंबोर के टाइगर रिसर्व मे हर वर्ष छह लाख से ज्यादा लोग आते हैं इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह प्रदेश अपने प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवन को कितने उपयुक्त ढंग से उपयोग मे ला रहे हैं । हिमाचल प्रदेश कि आर्थिक स्थिति को देखते हुये यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम उपलब्ध सभी संसाधनों का बेहतर उपयोग करें जिससे राजस्व मे वृद्धि हो । हिमाचल मे विपुल वन संपदा का दौहन इस दिशा मे एक बड़ा कदम साबित हो सकता है ।

वन संपदा के विभिन्न पहलुओं को अगर इस लेख का केंद्र बिन्दु न बनाकर केवल वन्य प्राणियों को ही पर्यटन के साथ जोड़कर प्रदेश सरकार के प्रयासों का आकलन करें तो हम दिशाहीन नजर आते हैं । राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के अतिरिक्त प्रदेश मे जुलोजिकल पार्क (चिड़ियाघर ) भी हैं पर गोपालपुर स्थित धौलाधार नेचर पार्क को छोड़कर कोई भी आदर्श स्थिति मे नहीं है। जिन उद्देश्यों को लेकर इन चिड़ियाघरों की स्थापना की थी आज वो उससे कहीं दूर नजर आते हैं । हिमाचल मे इस समय धौलाधार नेचर पार्क के अतिरिक्त हिमालयन नेचर पार्क (कुफ़री), रेणुका मिनी जू , सराहन पक्षीशाला, नेहरू पक्षीशाला मनाली और रिवालसर मे एक वन्य प्राणी विहार है । ये सभी चिड़ियाघर पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने के साथ साथ आय के अच्छे साधन हो सकते पर कुप्रबंधन का शिकार होकर सफ़ेद हाथी बनकर रह गए हैं ।

प्रदेश मे इस समय धौलाधार नेचर पार्क और रेणुका मिनी ज़ू दो ऐसे संस्थान है जहां सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं धौलाधार नेचर पार्क मे औसतन दो लाख और रेणुका मे औसतन डेढ़ लाख से अधिक पर्यटक प्रति वर्ष आते हैं। अन्य संस्थानों मे यह संख्या हजारों तक ही सीमित है । जिसने भी इन संस्थानों को खोलने की कल्पना की होगी निचित रूप से उनके मन मे प्रदेश के वन्य जीवन को पर्यटन के माध्यम से जोड़कर प्रदेश की आर्थिकी को सुदृढ़ करने की रही होगी यही वजह थी की ये सारे के सारे संस्थान पर्यटक स्थलों के आसपास ही हैं । पर इसमे कोई दो राय नहीं की वन विभाग मे व्याप्त भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के कारण हम इन संस्थानों को आय का साधन बनाने मे नाकाम साबित हुये हैं ।

Earth with the different elements

मनाली मे हर वर्ष दस लाख से अधिक पर्यटक आते हैं पर हैरानी की बात है कि मनाली के बीचों बीच स्थित नेहरू पक्षीशाला मे मात्र 25 हजार पर्यटक ही पहुँच पाते हैं जबकि यह आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र होना चाहिए था । आखिर क्यों यह पक्षीशाला पर्यटकों को अपनी और आकर्षित नहीं कर पाती है यह जानने के लिए जब हम पक्षीशाला पहुँचते हैं तो स्वतः ही हमारे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाते हैं इतने सुंदर स्थान मे स्थित होने के बाद भी बदहाली से जूझ रही यह पक्षीशाला वन विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़े करने पर मजबूर कर देती है । लगभग यही हाल रिवालसर स्थित वन्यप्राणी विहार का भी है चार पाँच कर्मचारियों के सहारे चल रहा यह संस्थान सीमित जगह मे वन्य प्राणियों के आसुओं का गवाह स्थल बन कर रह गया है ।

अस्सी के दशक मे ‘सिंह विहार’ के नाम से मशहूर रेणुका मिनी जू मे एक समय शेरों की संख्या 29 तक पहुँच गयी थी फिर धीरे धीरे शेरों के मरने का सिलसिला शुरू हुआ और वर्ष 2015 के अंत तक यहा से शेरों का भी अंत हो गया । उस समय की प्रसिद्धि का असर ही कहेंगे की आज भी यहाँ डेढ़ लाख से ज्यादा पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं पर चार पाँच तेंदुओं और हिरण प्रजाति के कुछ प्राणियों को देखकर कर वन्यजीव प्रेमियों को संतोष करना पड़ता है । यह बात समझ से परे है कि सात वर्ष बीत जाने के बाद भी शेरों को वापिस लाने कि कोई योजना सिरे क्यों नहीं चढ़ पायी ? जबकि इसमे कोई संशय नहीं कि यह चिड़ियाघर बाघ प्रजाति के वन्य जीवों लिए सबसे उपयुक्त स्थानों मे से एक है ।

पर्यटन हिमाचल की आर्थिकी का आधार है वर्तमान मे पर्यटन केवल सुंदर स्थानों के दर्शन या वहाँ रहने तक सीमित नहीं है। कश्मीर के खुलने और पड़ोसी राज्य उतराखंड मे पर्यटन को लेकर की जा रही कोशिशों के कारण काफी अधिक संख्या मे पर्यटक उस तरफ आकर्षित हो रहे हैं इन परिस्थितियों मे पर्यटकों को हिमाचल मे रोकने के लिए हमें अतिरिक्त प्रयास करने होंगे, ऐसे मे प्रदेश के वन्य जीवन को पर्यटन के साथ जोड़ने से निश्चित तौर पर सुखद परिणाम मिल सकते हैं। इस दिशा मे सबसे बड़ी पहल होगी कि हम हिमाचल प्रदेश मे भी एक टाइगर रिजर्व बनाने का प्रयास करें । इसके लिए कालेसर वन्य प्राणी अभयारण्य और रेणुका जी अभयारण्य बहुत उपयुक्त स्थान हैं । रणथंबोर की तर्ज इन स्थानों को विकसित किए जाने से हिमाचल को एक नयी पहचान मिलेगी ।

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