सै कुथु रहे मिजाज

असां टूटियो फूटीयो ग्लाई ग्लाई
कविता लेइ गढाई
अपनी बोली अपने वाक
अज फोलड़ी नोई पाई

सै भी क्या दिन थे भाई
बोहड़ कवालुये हंडदे फिरदे
गवाडु पिछवाडूये लंगदे रिडकदे
उठदे बैठदे मंडली लेई बनाईं
सोंदे जागदे कविता रचनी
दौड़ी दौड़ी के सारेयाँ जो दसनी
अपनी तारीफ अप्पू करनी

हूण भी सैही दिन है भाई
छैल छैल अपने मानू सयाने
छैल हूण कमकाज
नोये नोये ढंगसरैने
नोये हूण रिवाज
भटिया पर चरोटी चढांदे
तीनां दा क्या काज
बाईं पर रौनकां जमांदे
सै कुथु जवाक
पीठि परोखा कनां भरांदे
करदे नही मज़ाक
कोरियां करारियाँ गलां करन
सै कुथु रहे मिजाज
सै कुथु रहे मिजाज।

हेमांशु मिश्रा

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